बीती रात

ये हवा ही कुछ ऐसी है, अब किसको दोष दें -
भीड़ से हाथ छुड़ा तो लिया, पर अब घर से बहुत दूर है


उनके दरवाज़े पर इन्किलाब की दस्तक है -
मशाल जला लीजिएगा पहले यूँ कीजे की ज़हन पर पड़ी धूल हटा दीजिएगा


जो कभी भीड़ में गुम हो भी गए हम,
मामूली एक नश्तर सोच के याद कीजियेगा


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