चंद ढीट यादें
वो बाकियों से थोडा ऊंचा - एक पेड़ है रीठे का
उसकी छाँव के स्वाद ने मेरे ज़हन में अपना घर बसाया.
एक टीन, लकड़ी, मिट्टी का घर है, नीले दरवाजों वाला
कई जाड़ों में उसने मेरा आलस भुनाया
उसकी छाँव के स्वाद ने मेरे ज़हन में अपना घर बसाया.
एक टीन, लकड़ी, मिट्टी का घर है, नीले दरवाजों वाला
कई जाड़ों में उसने मेरा आलस भुनाया
एक रसोई है, जिसकी कूबड़ निकली हुई है
उसका धुंआ, अपनी आँखों से बहाया
उसका धुंआ, अपनी आँखों से बहाया
एक जंगल है बाँझ का, जिसकी चांदनी में
पैरों का छाला धुलाया।
पैरों का छाला धुलाया।
एक स्त्रोत है अमृत का – पथ्थरों के पीछे छुपा हुआ
उसने मुझे अपनी जवानी का मैल चखाया
बिच्छू घास है थोड़ी, बचपन से मैंने जिससे बैर निभाया।
धूल की चादर भी है, जिसका सफर बहुत आसान रहा
एक नशा है लाल रंग का, पेड़ों पर उगता है, उसने मुझे बहुत समाया।
बाकी रहे कुछ खेत - जिनपर लोट, मैंने अपना रंग पकाया।
बाज़ार भी हैं चंद दुकानों वाला, जिसकी ठंडी जलेबी ने मेरा बहुत मन जलाया।
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"In panktiyon ko padhte hue saari smritiyan jeevant si ho gayi"
-rahul