मासूमियत के बुलबुले





एक हरी ज़िन्दगी के सपने, चंद रिश्ते - कुछ नए,कुछ अपने 
पुरज़ोर फ़िज़ूल बातें; आधे चाँद, पौने सब्र की रातें।
तुम्हारी हर बात पर आह भरना, कहते कहते कुछ नहीं कहना 
जिद्दी सी मासूमियत का सिलसिला था, 
दुनिया में डूबने से पहले का बुलबुला था।

वो रंग दिलबरी का, तुम्हारी चुनरी पे जो लगा था 
छत की दोपहरी में गाढ़ा हुआ किया था,
आवारा उस दुप्पट्टे के पीछे मोहल्ले से रंजिशें रखना 
जिद्दी सी मासूमियत का सिलसिला था, 
दुनिया में डूबने से पहले का बुलबुला था।

दो पहिये पर तुम्हारे घर की ज़मीन नापना 
उन गलियों में छुप छुप के फिर सुकून फूंकना 
थक हार के फिर बरगद से शिकायतें करना 
जिद्दी सी मासूमियत का सिलसिला था, 
दुनिया में डूबने से पहले का बुलबुला था।

Comments

Anonymous said…
"दुनिया में डूबने से पहले का बुलबुला"...बड़ा ही fertile बिम्ब है, बहुत अच्छा लगा पढ़ कर!
Anonymous said…
kya hi khoobsurat bimb hai - "duniya me doobne se pahale ka bulbula", badi achchhi lagi kavita, bulbule ke prism se :)
Astha Rawt said…
Thank you Vilom. I really appreciate your diligent patience. :)
Anonymous said…
the first comment was not reflecting after I posted it, hence the second comment. :) Please delete either of these, after due diligence. :P
Astha Rawt said…
Oh don't worry about that, no one except you and me bother! Also, is there any way to connect with you, email id?

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